आयुर्वेद में बवासीर का इलाज के लिए एक पैरा-सर्जिकल प्रक्रिया है जिसमें धागे का उपयोग होता है। इससे आंतरिक और बाहरी, दोनों प्रकार की बवासीर का इलाज किया जा सकता है। हालांकि, मौजूदा समय में बवासीर की लेजर सर्जरी सबसे अच्छी एवं सुरक्षित सर्जिकल प्रक्रिया है।
इन दोनों प्रक्रियाओं के अपने विशिष्ट फायदे और नुकसान है। आज हम इन दोनों के बारे में विस्तार से जानेंगे, और कौन ज्यादा बेहतर है? इसकी चर्चा करेंगे।
क्षार सूत्र ट्रीटमेंट क्या है?
क्षार सूत्र ट्रीटमेंट या थेरेपी एक आयुर्वेदिक पैरा सर्जिकल प्रक्रिया है जिससे बवासीर का इलाज किया जाता है। इस प्रक्रिया में किसी सर्जिकल टूल का नहीं बल्कि एक धागे का उपयोग होता है। कई जड़ी-बूटियों की मदद से एक धागा निर्मित किया जाता। इस धागे में बवासीर के मस्से को काटने की उतनी ही शक्ति होती है जितनी किसी सर्जिकल उपकरण में होती है।
आयुर्वेद में क्षार सूत्र का वर्णन शुश्रुत और चरक जैसे महान चिकित्सकों ने किया है। आजकल इस विधि का उपयोग और अभ्यास भारत समेत विश्व के कई अन्य देशों में हो रहा है। यह बवासीर का इलाज की एक सुरक्षित प्रक्रिया है।
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क्षार सूत्र कैसे तैयार होता है?
क्षार सूत्र की प्रक्रिया के प्रथम चरण में शामिल है धागा निर्मित करना। इसमें हमेशा सनी (Linen) से निर्मित साइज 20 के सर्जिकल थ्रेड का उपयोग किया जाता है। धागे के ऊपर निम्न जड़ी-बूटियों का लेप लगाया जाता है:
- स्नुही लेटेक्स (Euphorbia neriifolia)
- अपमार्ग क्षार (Achyranthes Aspera)
- हरिद्रा चूर्ण (Turmeric Powder)
सबसे पहले धागे को स्नूही लेटेक्स से लेपित किया जाता है, फिर हैंगर की मदद से क्षार सूत्र कैबिनेट पर रखा जाता है। यह एक विशेष कैबिनेट है जो अल्ट्रावोइलेट लैंप से सुसज्जित होता है, इसलिए बैक्टीरिया या कोई अन्य सूक्ष्मजीव धागे को प्रभावित नहीं कर पाते हैं।
धागा सूख जाने के बाद, इस कोटिंग प्रक्रिया को दोबारा से किया जाता है। इस तरह स्नूही लेटेक्स के साथ यह प्रक्रिया कुल 11 बार की जाती है।
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11 लेप के बाद 12वीं कोटिंग स्नूही लेटेक्स और अपमार्ग क्षार से की जाती है। पहले उसी धागे को स्नुही लेटेक्स से गीला किया जाता है और फिर गीले धागे को अपमार्ग क्षार के ढेर से गुजारा जाता है। यह सुनिश्चित किया जाता है कि अपमार्ग क्षार धागा में अच्छी तरह लग गया है। यदि यह जरूरत से अधिक मात्रा में धागा के साथ चिपक गया है तो धागे को धीरे से हिलाकर अतिरिक्त मात्रा को गिरा दिया जाता है।
इस तरह अपमार्ग क्षार के साथ कोटिंग की प्रक्रिया कुल 7 बार की जाती है।
19वें लेप के लिए पहले उस धागे को स्नूही लेटेक्स में भिगोया जाता है, फिर गीला हो जाने पर हरिद्रा चूर्ण के ढेर से गुजारा जाता है। हल्दी के साथ इस प्रक्रिया को दो बार और किया जाता है।
इस तरह से धागा को कुल 21 बार उपर्युक्त जड़ी-बूटियों से लेपित किया जाता है। जब एक लेप पूरा होता है तो धागा के सूखने की प्रतीक्षा की जाती है फिर दूसरा लेप लगाया जाता है। यह एक लंबी प्रक्रिया होती है। एक धागा तैयार होने में लगभग 1 महीना लग जाता है।
धागे से बवासीर का इलाज की विधि
बवासीर होने पर रोगी के गुदा में मस्सों का निर्माण होता है, जो एक बढ़ी हुई अनचाही मांसपेशी की तरह दिखता है। क्षार सूत्र प्रक्रिया में धागा को मस्सों के आधार पर बाँध दिया जाता है। क्षार सूत्र के कारण हो रही जलन को कम करने के लिए यष्टिमधु तेल में डूबा हुआ पैक मलाशय के भीतर रखा जाता है।
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धागा मस्सों में रक्त प्रवाह को रोक देता है। रक्त की कमी होने के कारण मस्से सूखने लगते हैं और 7 से 10 दिन के भीतर गिर जाते हैं। लगभग 10-15 दिनों में घाव भी सूख जाता है।
आमतौर पर प्रक्रिया के लिए लोकल एनेस्थीसिया का उपयोग होता है। कभी-कभी जनरल या स्पाइनल एनेस्थीसिया भी उपयोग में लाया जा सकता है।
क्षार सूत्र की प्रक्रिया सुरक्षित है। इलाज के दौरान स्फिंकटर मांसपेशियों में चोट नहीं लगती जिससे मल असंयामता या किसी गंभीर जटिलता की स्थिति उत्पन्न नहीं होती है। इलाज सफल हो जाने के बाद बवासीर के दोबारा होने की संभावना भी बेहद कम रहती है।
बवासीर की लेजर सर्जरी क्या है?
यह बवासीर का इलाज की नवीनतम विधि है जिसमें लेजर किरणों का इस्तेमाल होता है। यह एक दर्दरहित प्रक्रिया है जो बवासीर का स्थाई इलाज प्रदान करती है।
बवासीर की लेजर सर्जरी में मस्सों को काटा या चीरा नहीं लगाया जाता है। यही कारण है कि यह सबसे सुरक्षित, प्रभावी और दर्द रहित प्रक्रिया है।
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बवासीर की लेजर सर्जरी की विधि
सबसे पहले रोगी को लेकाल एनेस्थीसिया दिया जाता है। इसके बाद लेजर बीम्स की इंटेंसिटी और फ्रीक्वेंसी सेट की जाती है। मानक बवासीर की पोजीशन और गंभीरता के अनुसार रखे जाते हैं।
लेजर किरणों को मस्सों पर डाला जाता है। प्रभावित क्षेत्र में तत्काल प्रभाव होता है और मस्से सूख जाते हैं। इस पूरी प्रक्रिया में लगभग 30 मिनट लगते हैं और इलाज के कुछ ही घंटा बाद हॉस्पिटल से छुट्टी मिल जाती है।
ऑपरेशन के दौरान या बाद में रक्तस्त्राव नहीं होता है। सर्जरी के दो दिन बाद से आप अपना सामान्य कार्य कर सकते हैं, ऑफिस जा सकते हैं। बस कुछ सावधानियों का पालन करना होता है जैसे- वजन न उठाना, भरपूर पानी पीना इत्यादि। जल्द ही आप पूरी तरह स्वस्थ हो जाते हैं।
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धागे से बवासीर का इलाज बनाम लेजर प्रक्रिया
क्षार सूत्र | लेजर प्रक्रिया |
बवासीर के इलाज का पुराना तरीका | आधुनिक तरीका |
गुदा में जलन की संभावना | जलन की संभावना बहुत कम |
कई घंटों की प्रक्रिया | आधा घंटा की प्रक्रिया |
15 दिन के भीतर मरीज रिकवर हो सकता है | केवल दो दन बाद से ऑफिस जा सकता है |
कई दिनों में राहत | तुरंत राहत |
संक्रमण का खतरा अधिक | संक्रमण का खतरा कम |
निष्कर्ष
दोनों ही प्रक्रियाओं के बाद बवासीर के दोबारा होने की संभावना कम रहती है, लेकिन पोस्ट-ऑपरेटिव दर्द और जटिलताओं के मामले में लेजर सर्जरी बेहतर साबित होती है।
क्षार सूत्र विधि का उपयोग न केवल बवासीर बल्कि भगंदर और गुदा विदर को भी ठीक करने के लिए किया जा सकता है। लेजर सर्जरी भी बवासीर के अलवा भगंदर और एनल फिस्टुला में उपयोग लाइ जाती है।
क्षार सूत्र विधि का उपयोग गर्भवती महिलाओं के लिए सुरक्षित नहीं है। इसके अलावा मलाशय में कैंसर, कुष्ठ रोग या हेपेटाइटिस होने पर भी क्षार सूत्र विधि से इलाज नहीं किया जा सकता है।
यदि आप बवासीर से पीड़ित हैं तो अपने शहर में सबसे अच्छा इलाज पाने के लिए हमसे संपर्क कर सकते हैं। रोगी की जांच के बाद हम उस प्रक्रिया का चयन करते हैं जो उसके लिए सबसे बेहतर है। आप हमारे गुदा रोग विशेषज्ञों से बात करना चाहते हैं तो मुफ्त में फॉर्म भर सकते हैं।